मैं एक आम आदमी हूं और काफी समय से देश में जो चल रहा है, उसे समझने की कोशिश कर रहा हूं। सरकार द्वारा काला धन और भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 1000 और 500 के नोट बंद करने के फैसले से मुझे भ्रष्टाचार और काले धन से मुक्ति की उम्मीद की किरण दिखने लगी थी, तो वे कौन लोग हैं, जो सरकार का विरोध मेरे नाम, यानी ‘आम आदमी’ के नाम पर कर रहे हैं। मेरा नाम लेकर विरोध करने का अधिकार इन बुद्धिजीवियों को किसने दिया? क्या मैं अपनी बात खुद नहीं कर सकता? मुझे इतना कमजोर यह लोग कैसे समझ सकते हैं कि मैं अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकता? आम आदमी का नाम लेकर सरकार को ललकारना बंद करो! मेरा नाम लेकर प्रधानमंत्री जी को घेरना बंद करो! शब्दों की परिभाषा बदलकर वाक्य के खूब मायाजाल रचे हैं आपने! लेकिन कम-से-कम आम आदमी को तो बख्श दो।
देश का आम आदमी अगर गांव में रहता है और वह किसान है, उसकी कमाई पर कोई टैक्स नहीं है, तो उसे तो कोई परेशानी भी नहीं है। देश का आम आदमी अगर मज़दूर है, तो उसे भी सरकार के इस निर्णय से कोई परेशानी नहीं है। इस देश का आम आदमी अगर चाय-पान या फिर ऐसी ही कोई छोटी दुकान चलाकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता है, तो परेशानी उसे भी नहीं है, क्योंकि न तो उसके पास कोई काला धन होगा और न हो कोई इन्हें चाय या पान के बदले 1000 या 500 के नोट देता होगा। इस देश का आम आदमी अगर कहीं किसी दुकान पर कोई छोटी-मोटी नौकरी करके अपना और परिवार का पेट लापता है, तो वह भी सरकार के इस निर्णय में सरकार के साथ है। अगर इस देश का आम आदमी शिक्षक है या ट्यूशन करके अपना जीवन यापन कर रहा है, तो वह भी प्रधानमंत्री जी के साथ है। तो फिर वे कौन लोग हैं, जो इसी आम आदमी का नाम लेकर देश को गुमराह करने में लगे हैं?
आज जो लोग बैंकों में लगने वाली लंबी कतारों की बात कर रहे हैं और आम आदमी को होने वाली परेशानी की दुहाई दे रहे हैं, उनसे कुछ सवाल हैं, जिनके उत्तर यह आम आदमी आज चाहता है। 8 नवंबर की रात 8 बजे जब प्रधानमंत्री ने 1000 और 500 के नोट बंद करने की घोषणा की, तो देश का हर आम आदमी खुश था। तो वे लोग कौन थे, जो कि रात 9 बजे से सुबह तक देश के सर्राफा बाजारों में खरीदारी कर रहे थे? उनमें मैं तो नहीं था। अगले ही दिन 10 नवंबर को इस देश का आम आदमी बैंक से नोट बदलवाने गया था, तो स्थिति सामान्य थी, फिर अचानक बैंकों में दो दिन बाद भीड़ कैसे होने लगी, जबकि सरकार ने 30 दिसंबर तक का समय दिया है? ग्रामीण क्षेत्रों में निकासी और जमा करने की पाबंदी शून्य होने के बावजूद लाइनें क्यों लग रही हैं? स्कूली विद्यार्थी, जिनके खातों में साल में सिर्फ एक बार छात्रवृत्ति के पैसे आते हैं, उनके खातों में अचानक 49,000 हजार रुपये कहां से आ गए? जन-धन खाते जो अब तक खाली थे, उनमें अचानक 9 नवंबर के बाद पैसे क्या आम आदमी ने जमा किए हैं? अपने नौकरों के खातों में उन्हें 60,000 का लालच देकर 2 लाख जमा कराके उनसे 1.40 लाख वापस लेने का काम आम आदमी कर रहा है? सरकार ने महिलाओं के खाते में 2.5 लाख तक की छूट दी है, तो अचानक ही कई बूढ़ी मां अमीर हो गर्इं, क्या ये किसी आम आदमी की मां हैं?
11 नवंबर के बाद बैंकों के आगे लोगों की कतार अचानक लंबी होती गई। क्या उस लाइन में आपको कोई भी बड़ा आदमी (सूट-बूट वाला) खड़ा दिखा? नहीं ना! जो सवाल आप पूछ रहे हैं, आम आदमी भी आपसे वही सवाल पूछ रहा है। फर्क बस यह है कि आम आदमी सवाल पूछ रहा है, क्योंकि वह आपसे जानना चाहता है कि लंबी कतारें और लंबा इंतजार उसी के नसीब में क्यों लिखा है और आप सवाल पूछ रहे हैं अपने आप को बचाने के लिए। क्या आपने सोचा है कि गरीब युवक एवं गरीब महिलाएं अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ लाइन में क्या कर रहे हैं? यह वह गरीब और बेरोजगार आम आदमी है, जिसका आज फिर इस्तेमाल हो रहा है, कमीशन बेसिस पर ये बार-बार लाइन में लगकर कुछ ‘खास’ लोगों के नोट बदल रहे हैं। ये ‘खास’ लोग ही उन्हें लाइन में खड़ा करा रहे हैं, कतारें लंबी करवा रहे हैं और फिर यही लोग सवाल भी पूछ रहे हैं। रेलवे के टिकटें बुक करा कर रिफंड क्या आम आदमी मांग रहा है? बाजार में कमीशन लेकर जो नोट बदले जा रहे हैं, क्या वह आम आदमी के हैं? अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि सरकार के इस निर्णय से परेशानी किसे है। हां, यह बात सही है कि इस समय शादियों के कारण कुछ असुविधा उन्हें जरूर हो रही है, जिनके यहां विवाह के मुहूर्त हैं, लेकिन देश निर्माण में वह लोग भी अपना सहयोग बेहद सहनशीलता के साथ कर रहे हैं।
देश का आम आदमी अगर गांव में रहता है और वह किसान है, उसकी कमाई पर कोई टैक्स नहीं है, तो उसे तो कोई परेशानी भी नहीं है। देश का आम आदमी अगर मज़दूर है, तो उसे भी सरकार के इस निर्णय से कोई परेशानी नहीं है। इस देश का आम आदमी अगर चाय-पान या फिर ऐसी ही कोई छोटी दुकान चलाकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता है, तो परेशानी उसे भी नहीं है, क्योंकि न तो उसके पास कोई काला धन होगा और न हो कोई इन्हें चाय या पान के बदले 1000 या 500 के नोट देता होगा। इस देश का आम आदमी अगर कहीं किसी दुकान पर कोई छोटी-मोटी नौकरी करके अपना और परिवार का पेट लापता है, तो वह भी सरकार के इस निर्णय में सरकार के साथ है। अगर इस देश का आम आदमी शिक्षक है या ट्यूशन करके अपना जीवन यापन कर रहा है, तो वह भी प्रधानमंत्री जी के साथ है। तो फिर वे कौन लोग हैं, जो इसी आम आदमी का नाम लेकर देश को गुमराह करने में लगे हैं?
आज जो लोग बैंकों में लगने वाली लंबी कतारों की बात कर रहे हैं और आम आदमी को होने वाली परेशानी की दुहाई दे रहे हैं, उनसे कुछ सवाल हैं, जिनके उत्तर यह आम आदमी आज चाहता है। 8 नवंबर की रात 8 बजे जब प्रधानमंत्री ने 1000 और 500 के नोट बंद करने की घोषणा की, तो देश का हर आम आदमी खुश था। तो वे लोग कौन थे, जो कि रात 9 बजे से सुबह तक देश के सर्राफा बाजारों में खरीदारी कर रहे थे? उनमें मैं तो नहीं था। अगले ही दिन 10 नवंबर को इस देश का आम आदमी बैंक से नोट बदलवाने गया था, तो स्थिति सामान्य थी, फिर अचानक बैंकों में दो दिन बाद भीड़ कैसे होने लगी, जबकि सरकार ने 30 दिसंबर तक का समय दिया है? ग्रामीण क्षेत्रों में निकासी और जमा करने की पाबंदी शून्य होने के बावजूद लाइनें क्यों लग रही हैं? स्कूली विद्यार्थी, जिनके खातों में साल में सिर्फ एक बार छात्रवृत्ति के पैसे आते हैं, उनके खातों में अचानक 49,000 हजार रुपये कहां से आ गए? जन-धन खाते जो अब तक खाली थे, उनमें अचानक 9 नवंबर के बाद पैसे क्या आम आदमी ने जमा किए हैं? अपने नौकरों के खातों में उन्हें 60,000 का लालच देकर 2 लाख जमा कराके उनसे 1.40 लाख वापस लेने का काम आम आदमी कर रहा है? सरकार ने महिलाओं के खाते में 2.5 लाख तक की छूट दी है, तो अचानक ही कई बूढ़ी मां अमीर हो गर्इं, क्या ये किसी आम आदमी की मां हैं?
11 नवंबर के बाद बैंकों के आगे लोगों की कतार अचानक लंबी होती गई। क्या उस लाइन में आपको कोई भी बड़ा आदमी (सूट-बूट वाला) खड़ा दिखा? नहीं ना! जो सवाल आप पूछ रहे हैं, आम आदमी भी आपसे वही सवाल पूछ रहा है। फर्क बस यह है कि आम आदमी सवाल पूछ रहा है, क्योंकि वह आपसे जानना चाहता है कि लंबी कतारें और लंबा इंतजार उसी के नसीब में क्यों लिखा है और आप सवाल पूछ रहे हैं अपने आप को बचाने के लिए। क्या आपने सोचा है कि गरीब युवक एवं गरीब महिलाएं अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ लाइन में क्या कर रहे हैं? यह वह गरीब और बेरोजगार आम आदमी है, जिसका आज फिर इस्तेमाल हो रहा है, कमीशन बेसिस पर ये बार-बार लाइन में लगकर कुछ ‘खास’ लोगों के नोट बदल रहे हैं। ये ‘खास’ लोग ही उन्हें लाइन में खड़ा करा रहे हैं, कतारें लंबी करवा रहे हैं और फिर यही लोग सवाल भी पूछ रहे हैं। रेलवे के टिकटें बुक करा कर रिफंड क्या आम आदमी मांग रहा है? बाजार में कमीशन लेकर जो नोट बदले जा रहे हैं, क्या वह आम आदमी के हैं? अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि सरकार के इस निर्णय से परेशानी किसे है। हां, यह बात सही है कि इस समय शादियों के कारण कुछ असुविधा उन्हें जरूर हो रही है, जिनके यहां विवाह के मुहूर्त हैं, लेकिन देश निर्माण में वह लोग भी अपना सहयोग बेहद सहनशीलता के साथ कर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें