सपने उनके पूरे होते हैं जिनके सपनों में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है ये कहावत तो आपने खूब सुनी होगी पर ये पंक्तियाँ परसपुर के मिझौरा गांव में रहने वाली दिव्यांग सुनीता पर बिल्कुल सटीक बैठती है उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया और समाज में मिसाल पेश की है
सुनीता की जिन्दगी में हमेशा मुश्किलें ही आई हैं आज से पांच साल पहले सुनीता के पिता की मौत हो गयी थी माँ भी बुजुर्ग हो चली थी अब ऐसे में घर का सिर्फ एक सहारा वो थी सुनीता
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खेती भी कुछ ज्यादा नहीं थी उसके घर में कमाने वाला भी कोई नहीं अब ऐसे में सुनीता पर सारी जिम्मेदारियां आ गयीं ऐसे हालातों में भी सुनीता ने हार नहीं मानीं और परिस्थितियों का सामना किया उसने सिलाई सीखी और उससे घर चलाना शुरू किया गाँव की महिलाएं भी खूब सपोर्ट कर रही हैं. गाँव की महिलाएं सुनीता से ही अपने कपड़े सिलवाती हैं ताकि उसे चार पैसे मिल जाएँ
इतनी कमाई तो हो ही जाती है जिससे घर का खर्च चल जाये और उसकी छोटी बहन की पढ़ाई हो जाये. पैसे की कमी होने के कारण 12वीं के बाद सुनीता को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. पर वो नहीं चाहती कि उसकी छोटी बहन की पढ़ाई भी छूटे. इसलिए वो मेहनत कर रही है.
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